एक नाम से ज्यादा कुछ भी नहीं...पहचान का प्रतीक...सादे पन्नों पर लिख कर नाम...स्वीकारता हूँ अपने अस्तित्व को...सच के साथ हूँ...ईमानदार आवाज़ हूँ...बुराई के खिलाफ हूँ...अदना इंसान हूँ...जो सिर्फ इंसानों से मिलता है...और...सिर्फ और सिर्फ इंसानियत पर मिटता है...
कोई पोस्ट नहीं. सभी पोस्ट दिखाएं
कोई पोस्ट नहीं. सभी पोस्ट दिखाएं
सदस्यता लें
संदेश (Atom)
जीनोम एडिटिंग
पहाड़ों से मुझे एलर्जी थी. ऐसा नहीं कि पहाड़ मुझे अच्छे नहीं लगते बल्कि ये कहना ज़्यादा उचित होगा कि पहाड़ किसे अच्छे नहीं लगते. मैदानी इलाक...
-
यूँ होता तो क्या होता हुयी मुद्दत कि ग़ालिब मर गया पर याद आता है वो हर इक बात पे कहना कि यूँ होता तो क्या होता ये शेर ग़ालिब के लिखे उन शेरो...
-
ऑर्गन डोनेशन जब ऑर्गन डोनेशन का फॉर्म ऑनलाइन भरा तो सरकार की तरफ़ से एक सर्टिफिकेट मिल गया. उसमें शरीर के सभी अवयव जिनको किसी की मृत्यु के ...
-
नेतागिरी दरवाज़ा उढ़का हुआ था. खटखटाते ही बिना आवाज़ के खुल गया. अन्दर का दृश्य कम से कम मेरी कल्पना के परे था. कमरे में मेज, कुर्सी और बक्से क...