गुरुवार, 16 जनवरी 2014

मिशन जीवन - V

मिशन जीवन - V


ऑपरेशन संतति समाप्ति पर था। अमर-मानसी की संतानें जीवनयुक्त नए ग्रह अर्थेरा पर स्थापित हो चुकीं थीं। अब उनके समक्ष पृथ्वी के लिए ३५० वर्षों की लम्बी वापसी-यात्रा की चुनौती थी। अर्थेरा पर सामान्य भोजन और वायु के उपयोग के कारण उनका जीर्णन प्रारम्भ हो चला था। उन्हें यथाशीघ्र मिशन जीवन के अंतिम चरण को कार्यान्वित करना था।  अर्थेरा पर कोई भी इनकी भिन्न वेश-भूषा और पद्यतियों के बाद भी दूसरे ग्रह का वासी मानने को तैयार न था। उन्हें पिछले २५ वर्षों में निरंतर यही लगता रहा कि अमर-मानसी किसी विकसित कबीले से निष्काषित युगल हैं।

अर्थेरा आर्थिक और तकनीकी दृष्टि से पिछड़ा अवश्य था परन्तु समुदाय के रूप में एक बहुत ही संगठित समूह था। इतने वर्षों में उनका सामना किसी भी अप्रिय घटना से नहीं हुआ था। यदि राजा अपनी प्रजा के प्रति जवाबदेह हो तो प्रजा भी उसकी आज्ञा को सर-माथे लेती है। पूरा अर्थेरा समाज सभी अपनी आवश्यकताओं और उत्तरदायित्वों का वहन परस्पर मिलजुल के सौहार्द पूर्ण तरीके से करता था। पृथ्वी के सभ्य समाज में व्याप्त आतंरिक विद्वेष का लेश मात्र लक्षण भी पिछले वर्षों में देखने को नहीं मिला। इन २५ वर्षों में कबीले  ने अमर-मानसी के सहयोग से अपनी जीवन शैली में अनेक सुधार किये, परन्तु उनकी मूलभूत व्यवस्था और आंतरिक ताने-बाने में किसी प्रकार का परिवर्तन नहीं आया। सहअस्तित्व सम्भवतः प्रकृति की मौलिक संरचना है। 

उचित अवसर पर एक दिन अमर-मानसी अपने यान तक गये। अंदर जा कर अपनी पृथ्वी वाली पोशाकों को पुनः धारण किया। यान को धरती पर चलाते हुए उसे अपने कबीले वाले गाँव ले आये। यान पूरे कबीले के लिए कौतुहल का विषय बन गया। दोनों ने सभी कबीले वालों के सामने अपने मिशन जीवन को विस्तार से समझाया। पृथ्वी से लाये चित्रों के द्वारा उन्होंने वहाँ की सभ्यता से सबको अवगत करने का प्रयास भी किया। दोनों ने समस्त काबिले को उनके सहयोग के लिए धन्यवाद ज्ञापित किया और साम्राज्ञी से अपनी वापसी-यात्रा के लिए अनुमति भी माँगी। उन्हें अब दोनों की दूसरे ग्रह वाली बातों में कुछ सत्यता तो दिखाई दी। परन्तु पूर्ण प्रमाणिकता तो यान के आकाश में लोप होने के बाद ही हुयी।

यान में बैठने के बाद अमर ने मानसी से कहा अर्थेरा से निकलने के लिये हमें पृथ्वी की डेढ़ गुनी ज्यादा एस्केप वेलोसिटी चाहिये। यहाँ का गुरुत्व बल पृथ्वी की तुलना में ज्यादा है। इसलिए वातावरण को न्यूनतम दूरी में पार करना होगा। उसने प्रक्षेपण के लिये यान में लगे चारों राकेट को एक साथ आरम्भ होने का निर्देश कम्प्यूटर पर दे दिया। उलटी गिनती आरम्भ हो गयी थी। सेकेण्ड अंक के शून्य होते ही कम्प्यूटर ने चारों राकेट एक साथ दाग दिये। यान धरती की लंबवत दिशा में उठ गया और कुछ ही क्षणों में अर्थेरा वासियों की चकित दृष्टि से ओझल हो गया।

अंतरिक्ष में परिक्रमा कर रहे मुख्य यान से संलग्न होना एक कठिन प्रक्रिया थी। लघु यान और मुख्य यान में माइक्रोवेव संचार के द्वारा अमर ने दोनों यानों को एक ही दिशा के लिए संचालित कर लिया। लघु यान के मुख्य यान में जुड़ने में हुयी एक भी गलती उन्हें सदैव अंतरिक्ष में ही रहने के लिए विवश कर देती। लघु यान को एक बार ही प्रयोग में लाने के लिए बनाया गया था। इसलिए वापस अर्थेरा ले वातावरण में प्रवेश करते ही वो छिन्न-भिन्न हो जाता। लघु यान को इस प्रकार जोड़ना था कि मुख्य यान पर किसी भी प्रकार का बल न लगे अन्यथा मुख्य यान अंतरिक्ष की असीम गहराइयों में डूब सकता था। मानसी ने इस पूरी प्रक्रिया को सहजता से पूर्ण किया। इस कार्य के लिए नियत १० सेकेण्ड में पूरी क्रिया को संपन्न करना था। अमर ने मानसी को कुशल संचालन के लिए बधाई दी। 

मुख्य यान पर आने के बाद अमर ने यान के ऑटो ट्रैकिंग उपकरण को सक्रिय कर दिया। इस उपकरण में यान के पथ से समस्त आँकड़े उपलब्ध थे। अब यान को स्वचालित प्रणाली में वापस पृथ्वी की कक्षा में स्थित चंद्रमा तक जाना था, जहाँ से इस यान की यात्रा प्रारम्भ हुयी थी। यात्रा लम्बी अवश्य थी पर उबाऊ बिलकुल नहीं। ग्रह-नक्षत्रों को इंफ्रा रेड टेलीस्कोप की सहायता से इतने निकट से देखना एक अलग ही अनुभव था। पुनः अमर और मानसी ने अपनी दिनचर्या को इस प्रकार व्यवस्थित किया कि दोनों में से एक पूर्ण रूप से चैतन्य रहे। श्वांस नियंत्रण और ध्यान का उनका पुराना खेल पुनः आरम्भ हो गया। तीन शताब्दी से अधिक अवधि की यह यात्रा उनके जीवन की अंतिम यात्रा हो सकती थी। अतः वे उसका सम्पूर्ण आनंद लेना चाहते थे।

लगभग ३०० वर्ष बीत चुके थे जब उन्होंने सौर्य मंडल में प्रवेश किया। इन छः-साढ़े छः सौ वर्षों में सूर्य मंडल कुछ बदल सा गया था। शनि के वलय समाप्त हो चुके थे। बृहस्पति के आकार में भी कमी आ गयी थी। मंगल की लालिमा में कुछ हरा-नीला रंग भी सम्मिलित था। मंगल और बृहस्पति के बीच एक पृथ्वी जैसे एक नए ग्रह का प्रादुर्भाव हो रहा था। पृथ्वी के चारों ओर दो-दो चन्द्र परिक्रमा कर रहे थे। ये सब उनके किये एक सुखद स्वप्न जैसा था। छः सौ साल पहले कोई ये कल्पना भी नहीं कर सकता था कि सौर्य मंडल में इस प्रकार परिवर्तन भी हो सकता है। दोनों को हर्ष था कि  वे इस घटना के साक्षी बने। उनकी यात्रा का अंत निकट आ रहा था। मात्र ४५-५० वर्ष और। 

अमर-मानसी ने यान की स्वचालित प्रणाली को बंद कर यान का नियंत्रण अपने हाथ में ले लिया। सबसे पहले उन्होंने चन्द्र अंतरिक्ष केंद्र से सम्बन्ध स्थापित करने का प्रयास किया। उधर से कुछ अस्फुट से सन्देश आ रहे थे। सन्देश कि भाषा भी उनकी समझ में नहीं आ रही थी। उन्हें लगा कि कहीं भारतीय अंतरिक्ष केन्द्र पर किसी अन्य देश ने अधिपत्य तो नहीं जमा लिया। दो चंद्रमाओं ने उनकी निर्णय लेने की क्षमता को भी प्रभावित कर दिया था। अमर ने मानसी से कहा धरती वालों ने लगता है चाँद के टुकड़े कर डाले। मानव के विकास और विनाश में अधिक अंतर नहीं है। अर्थेरा के लोग एक सम्पूर्ण जीवन जी रहे हैं। जबकि धरती पर इंसान तकनीक और क्षमताओं का उपयोग प्रकृति पर शासन करने के लिए कर रहा है। भारत का अंतरिक्ष केंद्र किस चाँद पर है, यह खोज पाना असम्भव सा लग रहा है। हम सीधे पृथ्वी पर प्रवेश करें। ये ही श्रेयस्कर प्रतीत होता है, मानसी ने अपनी सहज प्रतिक्रिया दे दी थी। 

अमर ने यान की दिशा पृथ्वी की ओर मोड़ दी। वातावरण के घर्षण से उत्पन्न यान के वाह्य तापमान को अनुज्ञेय सीमा से अंदर रखने हेतु अमर ने संक्षिप्त मार्ग का अनुसरण करते हुये वातावरण में प्रवेश लिया। अर्थेरा पर उतरने की पुनरावृत्ति करते हुये शीघ्र सम्पूर्ण यान पृथ्वी की विशाल जल राशि में समा गया। कुछ क्षणों के बाद यान समुद्र की सतह पर तैर रहा था। अपनी इस यात्रा को समाप्त करके अमर-मानसी के आनंद का ठिकाना नहीं रहा। वो हर्षातिरेक में चीख पड़े। यह यात्रा और उनका जीवन एक स्वप्न से कम नहीं था।सामान्य होने के बाद दोनों ने एक साथ  यान के प्रकोष्ठ से बाहर कदम रखा ही था कि उन्होंने यान को चारों तरफ से अन्य स्टीमरों से घिरा पाया। स्टीमरों पर सवार सभी की स्वचालित बंदूकों का लक्ष्य अमर-मानसी ही थे। उस समूह के मुखिया ने कुछ कहा। उसकी भाषा दोनों की समझ से परे थी। ये वही अस्फुट सी भाषा थी जिसे उन्होने चन्द्र अंतरिक्ष केन्द्र से संपर्क साधते हुए सुनी थी। दोनों ने क्षीण सी मुस्कान के साथ अपने दोनों हाथ ऊपर उठा दिये। 

चारों ओर से घेर कर उन्हें उनके यान के साथ निकटस्थ तट तक लाया गया। वहाँ पर यान को उस समूह ने अधिकृत कर लिया। अमर-मानसी को बंधक बना कर मुखिया सिपाहियों की एक टुकड़ी के साथ एक गाड़ी में शहर की ओर चल दिया। उन्नति के सन्दर्भ में ये देश ७०० साल पहले छोड़े भारत से आगे लग रहा था। लगभग उस समय के अमेरिका जैसा। शीघ्र ही वे लोग एक विशाल भवन के सामने थे। उस भवन पर अंकित संकेत चिन्हों से अमर-मानसी ने अनुमान लगा लिया कि यह इस देश की अंतरिक्ष संस्था है। इसी ने अमर के माइक्रोवेव तरंग सन्देश का अंतरावरोधन किया होगा और तब से ही ये लोग यान के पृथ्वी पर प्रवेश की प्रतीक्षा कर रहे होंगे। अमर-मानसी संतुष्ट थे कि वे वापस अपनी धरती पर आ गए हैं। दोनों ने किसी प्रकार का विरोध करना उचित नहीं समझा। उन्हें आशा थी कि शीघ्र ही वे अपनी बात इन लोगों को समझा सकेंगे। 

एक प्रतीक्षा कक्ष में दोनों को बैठा दिया गया। सिपाहियों का मुखिया भी उनके साथ बैठ गया। उसने अपनी भाषा में कुछ बात करने का प्रयास किया। थोड़ी ही देर में वे संकेतों की भाषा में कामचलाऊ बात कर रहे थे। शीघ्र उनकी प्रतीक्षा समाप्त हुयी। भीतर एक सभा कक्ष में कई लोग उपस्थित थे। सभा में उपस्थित लोगों ने अमर-मानसी से कई सवाल पूछे परन्तु वे विचारों का आदान-प्रदान कर सकने की स्थिति में नहीं थे। सभा की अध्यक्षता कर रहे व्यक्ति ने अमर-मानसी को एक विशेष कुर्सी पर बैठने का आदेश दिया। उनके पूरे शरीर को कुर्सी पर पट्टों की  सहायता से बांधने के पश्चात् उनके सर पर एक टोपी जैसा यंत्र लगा दिया गया। उन्हें आशा थी कि अब शायद बिजली के झटके दिए जाएँ परन्तु ऐसा कुछ नहीं हुआ। अध्यक्ष ने संकेत से अमर को अपनी बात कहने के लिए कहा। कुछ ही देर में अमर जो-जो सोच कर बोल रहे थे वो चलचित्र की भाँति सामने परदे पर दिखाई देने लगा। सभा में उपस्थित लोग कभी कौतुहल तो कभी असमंजस में वो दृश्य चित्र देख रहे थे। अमर ने अपनी पूरी यात्रा को अक्षरशः चित्रपट पर प्रदर्शित होते देखा। सभी पूरी तरह शान्त बैठे थे। पूरा वृतान्त समाप्त होते ही सभागार करतल ध्वनि से गूंज गया। सब लोग अपने स्थान पर खड़े हो गए थे।

मानसी सभाकक्ष के कोने में रखे ग्लोब को एकटक देख रही थी। उस पर अंकित महाद्वीप पृथ्वी के महाद्वीपों से अलग जान पड़ रहे थे।

(समाप्त)

- वाणभट्ट            
                      

11 टिप्‍पणियां:

  1. रोमॉचक यात्रा । चल-चित्र जैसा लग रहा है । सुन्दर शब्द -विन्यास । अद्भुत - अभिव्यक्ति ।

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  2. कल्पनाओं के विस्तार में मन को छोड़ आने की कहानी, बहुत ही सुन्दर।

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  3. हार्दिक बधाई, हार्दिक बधाई मिशन जीवन की सफलता के लिए।

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  4. प्रवाहमयी शब्दों में बंधी अद्भुत कल्पनाएँ ...... बहुत बढ़िया

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  5. रोमांच से लबरेज यात्रा...सुंदर प्रस्तुति।।।

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  6. रोचक कल्पनायें-प्रभावशाली
    बहुत सुंदर---!!!!!

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