शुक्रवार, 30 नवंबर 2012

देशभक्ति

देशभक्ति

देशभक्ति की ऐसी मिसालें अपने इतिहास में मिलतीं हैं कि हम खुद को महान समझने से रोक नहीं पाते। भाव कुछ ऐसा की हमारे बाप-दादा ने घी खाया था, हमारा हाँथ सूंघो। अपने अगल-बगल का हाल ये है की देशभक्त और देशभक्ति की बात परिहास का विषय बन गया है। और कुछ इच्छाधारी लोग जब चाहें इसे अपने शरीर  पर ओढ़ लें और जब चाहे आत्मा में घुसेड लें। ये नेता टाइप के जीव होते हैं और जो देश को हरवक्त ये एहसास दिलाते की वो न होते तो देश पता नहीं किस गर्त में डूब गया होता। साठ सालों में अन्य  देश कहाँ से कहाँ पहुँच गए और हम घोटालों की पर्त खोलने में लगे हैं। भला हो प्रिंट और चित्र मीडिया का, इसने इस देश में भगवान् का काम किया है। यानि ये मीडिया ही है जो सर्वत्र विद्यमान है, सब कुछ देख-सुन रहा है। कुछ भी देख सकता है, सुन सकता है।


गीता प्रेस की चोखी कहानियों में  एक कहानी पढ़ी थी, कि भगवान् सब जगह है सब कुछ देख रहा है। ऐसा एक पिता ने अपने बालक को बताया। कभी ऐसी स्थिति आई की घर में फांके की नौबत आ गयी। पिता पड़ोस के खेत में घुस कर कुछ अन्न का जुगाड़ करने लगा। अपने बच्चे को बाहर खड़ा कर दिया कि कोई देखे तो बता देना। थोड़ी देर बाद उसने पूछा बेटा कोई देख तो नहीं रहा है। बच्चे के जवाब से हम सब वाकिफ हैं। पिता ने चोरी करने का इरादा छोड़ दिया। बच्चे ने उसकी आँखे खोल दीं। सिर्फ महान बातें करने से कोई महान नहीं हो जाता। और किसी देश को महान बनाने के लिए उसके लोगों का आचरण और चरित्र की अहम् भूमिका है।


कुछ दिन पहले एक वक्ता को सुनने का सौभाग्य मिला। बात देशभक्ति की थी। 1948 में स्थापित होने के पहले इजरायल का अत्यंत संघर्षपूर्ण इतिहास रहा है। सैकड़ों साल के संघर्ष में यहूदी पूरी दुनिया में बिखर गए थे। उन्हें दरकार थी इस धरती पर जमीन के कुछ हिस्से की। कोई और देश उनकी इस इच्छा को कैसे मान लेता। लिहाज़ा उनके सामने एक दुश्वार जंग थी। वो दुनिया के विभिन्न कोनों में छिप के रहते। जब मिलते तो विदा के समय एक-दूसरे से कहते - फिर मिलेंगे दोस्त अपने इजरायल में। इस तरह पुश्तों तक उन्होंने उस इजरायल को जिंदा रक्खा जो धरती पर कहीं था ही नहीं।


एक यहूदी मित्र के बाबा की मृत्यु हो गयी थी। उसमें शरीक होने पहुंचे लोगों ने देखा कि जब अंतिम यात्रा के लिए शव को निकला जा रहा था। मित्र की दादी ने सोने की डिबिया से चांदी का पाउडर निकाल कर शव के नीचे बिछा दिया। कुछ अजीब सी रस्म थी ये किसी हिन्दुस्तानी के लिए। बाद में जब मित्र से पूछा कि दादी ने शरीर के नीचे क्या बिछाया था। सुन कर इजरायली दोस्त की आँखें नम हो गयीं। बोला हम यहूदियों की ये तमन्ना होती है कि हमारी मृत्य हमारी ज़मीं पर हो। वहां से विस्थापित होते समय हमारे पुरखे वहां की मिटटी अपने साथ ले आये थे। ये हमारे वतन की मिटटी है जो किसी इजरायली के शरीर के नीचे  डाली जाती है, मृत्य के समय।


वतन के प्रति इस प्रेम के बारे में सुन कर सभागार में उपस्थित हम भारतीयों ने खूब तालियाँ बजायीं, जोश में। बाहर निकलते समय मै सोच रहा था कि हम अपने देश से भागते हुए क्या ले जाते, अपने साथ। 


- वाणभट्ट              

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